*Samrat Ashoka – सम्राट अशोक* भारतीय इतिहास का एक ऐसा चरित्र है, जिसकी तुलना विश्व में किसी से नहीं की जा सकती। वह भारतीय मौर्य साम्राज्य के शासक थे जिन्होंने C 268 से 232 BCE तक भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया था।

Samrat Ashok

पूरा नाम   – अशोक बिंदुसार मौर्य
जन्मस्थान – पाटलीपुत्र
पिता       – राजा बिंदुसार

सम्राट अशोक का इतिहास – Samrat Ashoka history in Hindi

अशोका ने मौर्य शासक बिन्दुसार और माता सुभद्रांगी के बेटे के रूप में और मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य के वे पोते के रूप में जन्म लिया। उनका का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय) था। उन्हें मौर्य साम्राज्य का तीसरा शासक माना जाता हैं।

ऐसा कहा जाता हैं की सम्राट अशोक को कुशल सम्राट बनाने में आचार्य चाणक्य का बहुत बड़ा योगदान रहा।

सम्राट अशोक का बचपन – Samrat Ashoka Childhood Story

अल्पायु में ही उनमे लढने के गुण दिखाई देने लगे थे और इसीलिए उन्हें प्रशिक्षण के लिये शाही प्रशिक्षण दिया गया था। वे एक उच्च श्रेणी के शिकारी भी कहलाते है और उन्होंने केवल लकड़ी की एक छड़ी से शेर का शिकार किया था। वे एक जिंदादिल शिकारी और साहसी योद्धा भी था। उनके इसी गुणों के कारण उन्हें उस समय मौर्य साम्राज्य के अवन्ती में हो रहे दंगो को रोकने के लिये भेजा गया था।

C 268 के समय मौर्य साम्राज्य सम्राट अशोक ने अफगानिस्तान के हिन्दू कुश में अपने साम्राज्य का विस्तार किया था उनके साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (मगध, आज का बिहार) और साथ ही उपराजधानी तक्सिला और उज्जैन भी थी।

अशोक ने अपने-आप को कुशल प्रशासक सिध्द करते हुए तीन साल के भीतर ही राज्य में शांति स्थापित की। उनके शासनकाल में देश ने विज्ञान व तकनीक के साथ – साथ चिकित्सा शास्त्र में काफी तरक्की की। उसने धर्म पर इतना जोर दिया कि प्रजा इमानदारी और सच्चाई के रास्ते पर चलने लगी। चोरी और लूटपाट की घटानाएं बिलकुल ही बंद हो गईं।

अशोक घोर मानवतावादी थे। वह रात – दिन जनता की भलाई के काम ही किया करते थे। उन्हें विशाल साम्राज्य के किसी भी हिस्से में होने वाली घटना की जानकारी रहती थी। धर्म के प्रति कितनी आस्था थी, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वह बिना एक हजार ब्राम्हणों को भोजन कराए स्वयं कुछ नहीं खाते थे, कलिंग युध्द अशोका के जीवन का आखरी युध्द था, जिससे उनका जीवन को ही बदल गया।

अशोका और कलिंगा घमासान युध्द – Ashok Kalinga War

तक़रीबन 260 BCE में अशोका ने कलिंग (वर्तमान ओडिशा) राज्य के खिलाफ एक विध्वंशकारी युद्ध की घोषणा की थी। उन्होंने कलिंग पर जीत हासिल की थी, इससे पहले उनके किसी पूर्वज ने ऐसा नही किया था। कलिंग के युद्ध में कई लोगो की मृत्यु होने के बाद अशोका ने बुद्ध धर्म को अपना लिया था।

कहा जाता है की अशोका के कलिंग युद्ध में तक़रीबन 1,00,000 लोगो की मौत हुई थी और 1,50,000 लोग घायल हुए थे। इस युध्द में हुए भारी रक्तपात ने उन्हें हिलाकर रख दिया। उन्होंने सोचा कि यह सब लालच का दुष्परिणाम है और जीवन में फिर कभी युध्द न करने का प्रण लिया। अशोका ने 263 BCE में ही धर्म परिवर्तन का मन बना लिया था। उन्होंने बौध्द धर्म अपना लिया और अहिंसा के पुजारी हो गये।

बाद में उन्होंने पुरे एशिया में बौध्द धर्म के प्रचार के लिए स्तंभों और स्तूपों का निर्माण कराया। बनवाए। अशोका के अनुसार बुद्ध धर्म सामाजिक और राजनैतिक एकता वाला धर्म था। बुद्ध का प्रचार करने हेतु उन्होंने अपने राज्य में जगह-जगह पर भगवान गौतम बुद्ध की प्रतिमाये स्थापित की। और बुद्ध धर्म का विकास करते चले गये।

बौध्द धर्म को अशोक ने ही विश्व धर्म के रूप में मान्यता दिलाई। विदेशों में बौध्द धर्म के प्रचार के लिए अशोक ने अपने पुत्र और पुत्री तक को भिक्षु-भिक्षुणी के रूप में भारत से बाहर भेजा।

सार्वजानिक कल्याण के लिये उन्होंने जो कार्य किये वे तो इतिहास में अमर ही हो गये हैं। नैतिकता, उदारता एवं भाईचारे का संदेश देने वाले अशोक ने कई अनुपम भवनों तथा देश के कोने-कोने में स्तंभों एवं शिलालेखों का निर्माण भी कराया जिन पर बौध्द धर्म के संदेश अंकित थे।

भारत का राष्ट्रीय चिह्न ‘अशोक चक्र’ तथा शेरों की ‘त्रिमूर्ति’ भी अशोक महान की ही देंन है। ये कृतियां अशोक निर्मित स्तंभों और स्तूपों पर अंकित हैं। सम्राट अशोक का अशोक चक्र जिसे धर्म चक्र भी कहा जाता है, आज वह हमें भारतीय गणराज्य के तिरंगे के बीच में दिखाई देता है। ‘त्रिमूर्ति’ सारनाथ (वाराणसी) के बौध्द स्तूप के स्तंभों पर निर्मित शिलामुर्तियों की प्रतिकृति है।

अशोका के नाम “अशोक” का अर्थ “दर्दरहित और चिंतामुक्त” होता है। अपने आदेशपत्र में उन्हें देवनामप्रिया और प्रियदार्सिन कहा जाता है। कहा जाता है की सम्राट अशोका का नाम अशोक के पेड़ से ही लिया गया था।

आउटलाइन ऑफ़ हिस्ट्री इस किताब में अशोका में बारे में यह लिखा है की, “इतिहास में अशोका को हजारो नामो से जानते है, जहा जगह-जगह पर उनकी वीरता के किस्से है, उनकी गाथा पुरे इतिहास में प्रचलित है, वे एक सर्व प्रिय, न्यायप्रिय, दयालु और शक्तिशाली सम्राट थे।

लोकहित के नजरिये से यदि देखा जाये तो सम्राट अशोक ने अपने समय में न केवल मानवों की चिंता की बल्कि उन्होंने जीवमात्र के लिये कई सराहनीय काम भी किये है। सम्राट अशोक को एक निडर एवं साहसी राजा और योद्धा माना जाता था।

अपने शासनकाल के समय में सम्राट अशोक अपने साम्राज्य को भारत के सभी उपमहाद्वीपो तक पहुचाने के लिये लगातार 8 वर्षो तक युद्ध लढते रहे। इसके चलते सम्राट अशोक ने कृष्ण गोदावरी के घाटी, दक्षिण में मैसूर में भी अपना कब्ज़ा कर लिया परन्तु तमिलनाडू, केरल और श्रीलंका पर नहीं कर सके।

सम्राट अशोक जैसा महान शासक हमे शायद ही इतिहास में कोई दूसरा दिखाई देता है। वे एक आकाश में चमकने वाले तारे की तरह है जो हमेशा चमकता ही रहता है, भारतीय इतिहास का यही चमकता तारा सम्राट अशोका है।

एक विजेता, दार्शनिक एवं प्रजापालक शासक के रूप में उसना नाम अमर रहेगा। उन्होंने जो त्याग एवं कार्य किये वैसा अन्य कोई नहीं कर सका।

सम्राट अशोका एक आदर्श सम्राट थे। इतिहास में अगर हम देखे तो उनके जैसा निडर सम्राट ना कभी हुआ ना ही कभी होंगा। उनके रहते मौर्य साम्राज्य पर कभी कोई विपत्ति नहीं आयी।

सम्राट अशोक की मृत्यु – Samrat Ashoka Death

सम्राट अशोक ने लगभग 40 वर्षों तक शासन किया। ई. सा पूर्व 232 के आसपास उनकी मृत्यु हुयी।

विश्व इतिहास में अशोक महान एक अतुलनीय चरित्र है। उस जैसा ऐतिहासिक पात्र अन्यत्र दुर्लभ है। भारतीय इतिहास के प्रकाशवान तारे के रूप में वह सदैव जगमगाता रहेगा